हेलो फ्रेंड्स आज मैं आपको जिस ट्रेन जर्नी के बारे में बताने वाला हूं वह सफर में तो छोटी है लेकिन उसका अनुभव सोच बदलने वाला है। मैं और मेरी दादी मां ट्रेन से सतना से जबलपुर जा रहे थे, गर्मी के दिन थे जिस वजह से मेरी दादी मां ने पानी का थर्मस साथ में रख लिया था। लेकिन हमें यह नहीं पता था कि ट्रेन आज लेट आएगी जिस वजह से पानी रेलवे स्टेशन में ही खत्म हो गया।


जब हम ट्रेन में बैठे तब हमारे पास पानी नहीं बचा। ट्रेन चल पड़ी गर्मी अधिक होने की वजह से मेरी दादी मां को प्यास लग आई और मेरा गला भी सूखने लगा। कुछ देर बाद जब ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी तो मैं ट्रेन से उतरकर पानी की बोतल ले आया और मैंने दादी को पानी पीने को दिया। लेकिन मेरी दादी मां ने यह कहते हुए मना कर दिया कि ना जाने किन-किन लोगों का यह पानी छुआ होगा यह पानी मैं नहीं पियूंगी।

उनके कहने का मतलब यह था कि ना जाने किस किस जाति के लोगों ने इस पानी को छुआ होगा। वह क्या है न मेरी दादी थोड़ा पुराने खयालातों की थीं और जात पात बहुत मानती थी। हां मैं जानता हूं यह बात गलत है लेकिन यह ट्रेन की यात्रा मेरी दादी मां की सोच पूरी तरह बदलने वाली थी।

मेरी दादी मां ने तो पानी नहीं पिया लेकिन मुझे प्यास लगी थी और मैं इन बातों को बिल्कुल भी नहीं मानता था तो मैंने तो वह पानी पिया और आगे के सफर के लिए भी थोड़ा बचा लिया। ट्रेन जैसे-जैसे जबलपुर की ओर बढ़ रही थी मेरी दादी मां की प्यास भी उतनी ही तेजी से बढ़ रही थी और दादी बार-बार मुझसे पूछ रही थी कि बेटा ट्रेन जबलपुर कितनी देर में पहुंचेगी।

मैं हर बार दादी से कह देता दादी अभी बस थोड़ी देर से हम जबलपुर पहुंच जाएंगे, लेकिन दादी के लिए एक-एक मिनट जैसे एक एक घंटे के बराबर था। क्योंकि उनका गला पूरी तरह से सूख चुका था और प्यास के मारे उनके गले से आवाज भी नहीं निकल रही थी। मेरे सामने वाली बर्थ में बैठी एक महिला को मेरी दादी की परेशानी समझ में आ गई और उन्होंने अपने पास से पानी की बोतल देते हुए कहा यह लीजिए मां जी आप यह पानी पीजिए।

मेरी दादी मां जी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि नहीं बेटी बस अब थोड़ी देर में मैं जबलपुर पहुंच जाऊंगी, वहां मेरी छोटी बहन है उसके यहां जाकर जी भर के पानी पी लूंगी वह क्या है मैं बाहर का ना कुछ खाती हूं और ना कुछ पीती हूं। उस महिला ने मेरी दादी को जवाब देते हुए कहा कि आप चिंता ना करिए माजी मेरी जाति ऊंची है आप बिना संकोच के पानी पी सकती हैं, लेकिन फिर भी मेरी दादी मां ने मना कर दिया।


दोपहर के 2:00 बज रहे थे और ट्रेन फिर से स्टेशन पर रुकी मेरी पानी की बोतल खत्म हो चुकी थी, मैं ट्रेन से उतर कर एक और पानी की बोतल ले आया लेकिन इस बार मैंने दादी से पानी पीने के लिए नहीं पूछा, मैं इतना प्यासा था कि मैं बॉटल का आधा पानी पी गया और बाकी का पानी आगे के सफर के लिए बचा लिया। दादी बोतल की ओर देख रही थी शायद अब उनकी प्यास उनकी सोच से आगे निकल गई थी और शायद उनकी सोच बदलने वाली थी।

उन्होंने मुझसे कहा बेटा मुझे भी थोड़ा सा पानी दे दे अब मुझसे नहीं रहा जा रहा। मैंने भी दादी उसे थोड़ा मजाक करने का सोचा और कहा दादी यह न जाने किस जाति के आदमी की दुकान से लाया हूं आप मत पीजिए यह पानी अच्छा नहीं है।

मेरी दादी मां ने कहा तू चप कर प्यास से मेरी जान जा रही है और तुझे मजाक सूझ रहा है मैंने फिर कहा, दादी पहले भी तो मैंने आप को पानी दिया था तब आपने यह कह कर मना कर दिया था कि ना जाने किस जाति का छुआ हुआ होगा मुझे नहीं पीना यह पानी। यह भी तो वही पानी है। लेकिन दादी ने इस बार मेरी बात का जवाब नहीं दिया और मेरे हाथ से पानी की बोतल छीन ली और तुरंत पानी पी लिया।

वो महिला भी मजाक के लहजे में बोली क्यों मां जी इस पानी के स्वाद में कोई अन्तर है क्या। दादी को यह बात समझ नहीं आई तो उन्होंने कहा क्या कह रही हो बेटी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा, अरे मां जी मेरे कहने का मतलब यह है कि जो पानी आप अपने घर में पीती हैं और यह जो अभी आप ने पिया जिस पर पता नहीं किस किस जाति के लोगों के हाथ लगे होंगे उसे फिर अपने से पिया तो इस पानी में कुछ अंतर है क्या?

तो मेरी दादी मां ने कहा नहीं बेटी मैं आज समझ गई हूं कि यह जात पात सिर्फ एक सोच है और कुछ नहीं है। अगर आज मैं यह ट्रेन का सफर नहीं कर रही होती तो यह बात मुझे समझ में नहीं आती और मैं आज भी इसी जात पात के फेर में फंसी रहती।

मेरी सोच बहुत पुरानी थी और समय के साथ इसे बदलना पड़ता है नहीं तो समय आप को हो बदल देगा। मुझे यह बात समझ में आ गई है अब कभी ऐसी गलती नहीं करेंगी। दोस्तों मेरा और मेरी दादी मां का यह सफर मुझे ज़िंदगी भर याद रहेगा मैं तो सीखा बहुत कुछ इस से आप के लिए भी इस में सीखने के लिए बहुत कुछ है।

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