आज हम आपको उत्तराखंड में स्थित जागेश्वर महादेव मंदिर की जानकारी देंगे। जिससे आप को जागेश्वर महादेव मंदिर की यात्रा करने में कोई बाधा न आए। और आप इस यात्रा का आनंद लें सकें। भगवान शिव का न आदी है और न ही अंत। शिव को आकर्षक वेश भूषा और अलंकारों की भी जरूरत नहीं है। शिव जी के पास भोग की कोई भी वस्तु नहीं है। जहाँ कोई जाना पसंद नहीं करता, उस श्मशान में भगवान शिव अपनी धूनी जमाते हैं। हिमालय जैसा विकट पर्यावरण वाला इलाका उनका निवास स्थान है। दूसरे देवताओं के मुकाबले शिव जी की पूजा- आराधना बेहद सरल मानी जाती है। उन्हें एक लोटा पानी, बेल-पत्र और धतूरे से भी प्रसन्न किया जा सकता है। तो जागेश्वर धाम की यात्रा करने के लिए आप हमारे आर्टिकल को जरूर पढ़े|

“जागेश्वर महादेव मंदिर”

उत्तराखंड में स्थित कुमाऊं क्षेत्र में अल्मोड़ा जिले से 36 किलोमीटर उत्तर पूर्व में यह मंदिर स्थित है। मंदिरों के नाम से प्रसिद्ध जागेश्वर देवभूमि उत्तराखंड का एक बेहद ही खूबसूरत स्थान है। जो अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह धार्मिक स्थान 100 से भी ज्यादा मंदिरों का घर है। इसलिए इसे जागेश्वर घाटि मंदिर व जागेश्वर मंदिर कहा जाता है। जागेश्वर धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहा जाता है कि यह प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिव पूजन की परंपरा सर्वप्रथम आरंभ हुई। जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम और भगवान शिव की तपोस्थली माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को आठवां ज्योतिर्लिंग माना गया है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव एवं सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी । प्राचीन समय में जागेश्वर महादेव मंदिर में जागेश्वर में मांगी गई सभी मन्नते उसी रूप में स्वीकार हो जाती थी जिसका भारी दूरूपयोग होने लगा। 8वीं शदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और इस दूरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। अब यहां सिर्फ यक्ष और अनुष्ठानों से ही मनोकामनाएं पूरी हो सकती है। यह भी मान्यता है कि भगवान राम के पुत्र लव कुश ने यहां यक्ष आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित किया था। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है मंदिरों का निर्माण पत्थर की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है। इस स्थान पर 7वीं से लेकर 12वीं शताब्दी के मंदिर मोजूद है। इन मंदिरों का निर्माण उत्तरी और मध्य भारतीय शैली में किया गया है। यहां के प्राचीन मंदिर भगवान शिव के अलावा भगवान विष्णु और मां दुर्गा को भी समर्पित है। जागेश्वर एक हिन्दू तीर्थ स्थल है जहां पर सालभर श्रद्धालु और पर्यटकों का आगमन लगा रहता है। यह स्थान कई खूबसूरत मंदिरों का संग्रह स्थल है जिसमें दांडेश्ववर मंदिर, चंडिका मंदिर, जागेश्वर महादेव मंदिर , कुबेर मंदिर , महामृत्युंजय मंदिर , नंदा देवी ,नवगृह मंदिर, और सूर्य मंदिर शामिल हैं। जागेश्वर के मंदिरों का इतिहास अस्पष्ट है। यह स्थल भारत के उन चुनिंदा प्राचीन स्थलों में गिना जाता है जहां अध्य्यन और विद्वानों का ध्यान नहीं पहुंच पाया फिर भी यहां मौजूद कई मंदिरों की वास्तुकला और शैली को देखकर इन्हें 7वीं से 12वीं शताब्दी का बताया जाता है। जागेश्वर मंदिर को देखकर यह लगता है कि इनका निर्माण पूजा के लिए नहीं किया जाता था। क्योंकि अधिकांश मंदिरों के गृभगृह अपेक्षाकृत छोटे हैं जहां एक पुजारी भी नहीं बैठ सकता है ।जागेश्वर धाम में भगवान शिव को समर्पित 124 छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है। कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग पर स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि गुरु आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ के लिए प्रस्थान करने से पहले जागेश्वर के दर्शन किए और यहां कई मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुन: स्थापना भी की थी। यह सड़क के दक्षिण में है। जिसके पास एक देवदार जंगल है। जागेश्वर एक हिन्दू तीर्थ शहर है और शैव परंपरा में धामों में से एक है ‌। घाटी में कई मंदिर समूह है जो जैसे दडेश्वर और जागेश्वर स्थल। जागेश्वर महादेव मंदिर को तरूण जागेश्वर भी कहा जाता है। स्कंदी की सशस्त्र मूर्तीयां और दो द्वारपाल या गार्ड मंदिर के प्रवेश द्वार पर देखें जा सकता है। परिसर में मुख्य मंदिर के पश्चिम की तरफ स्थित है। और बाल जागेश्वर या हिन्दू भगवान शिव के बच्चे के रूप में समर्पित है। वैसे तो यहां हर रोज श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है परन्तु श्रवण मास के दौरान यहां जागेश्वर मानसून फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है, जिसमें शामिल होने के लिए दूर दराज से पर्यटक और श्रद्धालुओं का आगमन होता है।



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जागेश्वर महादेव मंदिर की सोंन्दर्यता

पतित पावन जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र धाम जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहार भगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है। जागेश्वर धाम में एक कुंड, है कुंड के अंदर थोड़ा सा पानी और कमल के फूल खिले रहते हैं। यह माना जाता है कि कुंड की तरफ पीठ लगाकर रुपया फेंका जाए और कमल के पत्तों के ऊपर अटक जाए तो उसकी मनोकामना जल्दी ही पूरी होती है. और यह भी कहा गया है श्री राम के पुत्र लव कुश ने यहां आकर यज्ञ का आयोजन किया था। जागेश्वर धाम हिमालय से शुशोभित जहां कहीं गंगा की धारा बहती है , तो कहीं घने देवदार के जंगल है, कहीं अनगिनत पक्षियों का कलरव है, तो कहीं फूलों की रंगीन बहार, कहीं टूटी सड़कें हैं तो कहीं अचानक भैड़ बकरियों के रेवड़ सामने आते हैं। जागेश्वर महादेव मंदिर बहुत ही सुंदर और आकर्षक है।

जागेश्वर धाम कैसे पहुंचें?

जागेश्वर धाम पहुंचने के लिए दिल्ली से लगभग 10घटें और काठगोदाम से 4घटें लगते हैं। जागेश्वर आप तीन तरीकों से पहुंच सकते हैं। पहला सड़क से, हवाई जहाज से, और ट्रेन से।

सड़क मार्ग-

सड़क मार्ग से जागेश्वर धाम अल्मोड़ा के दर्शन करना बहुत ही आसान है आप हल्द्वानी, भीमताल, गरम पानी या फिर नैनीताल होते हुए भी अल्मोड़ा के रास्ते चितई से होते हुए जागेश्वर धाम पहुंच सकते हैं।

हवाई मार्ग-

जागेश्वर धाम अल्मोड़ा आने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर है. पंतनगर हवाई अड्डा मुख्य शहर हल्द्वानी से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हल्द्वानी से अल्मोड़ा लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर है आप यह दूरी बस या टैक्सी से तय कर सकते हैं।

रेल मार्ग-

नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है यहां से अल्मोड़ा के लिए बस और टैक्सी की सुविधा हमेशा उपलब्ध रहती है ।इस योजना के लिए जागेश्वर का स्टेशन काठगोदाम है जो जंगेश्वर धाम से 25 धुरंधे की दूरी पर है। काठगोदाम के बाद आप अलमोड़ा और जागेश्वर के लिए बसों की मदद से जा सकते हैं।

“जागेश्वर धाम जाने का सही समय”

जागेश्वर धाम अल्मोड़ा घूमने के लिए सबसे सही समय 8 अप्रैल मई जून तक का माना जाता है ।वैसे तो आप गर्मियों के मौसम में भी अल्मोड़ा घूम सकते हैं आपको यह ध्यान में रखना है कि यहां बरसात का मौसम ना हो और आप सर्दियों के मौसम में आ रहे हैं तो सर्दियों के कपड़े साथ लेकर आएं, क्योंकि अल्मोड़ा में बहुत ज्यादा ठंड होती है। इसलिए आप अल्मोड़ा आने की योजना बना रहे हैं तो सर्दियों से थोड़ा पहले बरसात के मौसम के बाद यानी कि मार्च से जून और अक्टूबर
नवंबर के महीने में जागेश्वर धाम अल्मोड़ा घूमने का प्लान बना सकते हैं।और आपको उत्तराखंड के प्रसिद्ध व्यंजनों के बारे में भी जरूर पता होना चाहिए |

“जागेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास”

जागेश्वर धाम का निर्माण गुप्त वंश के सम्राटों के काल में हुआ था। आठवीं और दसवीं शताब्दी में निर्मित जागेश्वर धाम में मुख्य मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजा ने करवाया था। इस मंदिर का निर्माण तीन कालों में बांटा गया है- पहला काल कत्यूरी काल ,दूसरा उत्तर कत्यूरी काल ,एवं चंद्र काल,इन तीनों ही कालों के दौरान मंदिर का निर्माण जारी रहा और किया भी गया था। बाकी जो छोटे-छोटे मंदिर हैं उन्हें बाद में बनावाया गया है। अपनी अनोखी कलाकृति से इन साहसी राजाओं ने देवदार के घने जंगल के मध्य बने जागेश्वर महादेव मंदिर का ही नहीं बल्कि अल्मोड़ा जिले में 400 सौ से भी अधिक मंदिरों का निर्माण किया है। जिसमे से जागेश्वर में ही लगभग 150 छोटे-बड़े मंदिर है ।मंदिरों का निर्माण लकड़ी और सीमेंट की जगह पर पत्थरों की बड़ी-बड़ी स्लैब से किया गया है। दरवाज़े की चौखटे देवी-देवताओ की प्रतिभाओं से चिन्हित है । जागेश्वर को पुराणों में “हाटकेश्वर” और भू-राजस्व लेख में “पट्टी-पारुण” के नाम से भी जाना जाता है ।

“श्रावणी मेले में आते हैं विदेशी भक्त”

पत्थर की मूर्तियों और नक्काशी मंदिर का मुख्य आकर्षण है। जागेश्वर महादेव मंदिर के अलावा यहाँ और भी कई शानदार मंदिर हैं महामृत्युंजय मंदिर यहां का सबसे पुराना मंदिर है, जबकि दंडेश्वर मंदिर सबसे बड़ा मंदिर है। इसके अलावा भैरव, माता पार्वती, केदारनाथ, हनुमानजी, दुर्गाजी के मंदिर भी विद्यमान हैं। और बड़ा ही शानदार मेला लगता है जो हर वर्ष यहां सावन के महीने में श्रावणी मेला लगता है। देश ही नहीं विदेशी भक्त भी यहां आकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।

“उत्तराखंड के जागेश्वर महादेव मंदिर की विशेषताएं”

मान्यता है यह प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा की परंपरा सर्वप्रथम आरम्भ हुई थी। यदि आप आग्रह करें तो यहाँ के पुजारी आपको पाषाणी लिंग के ऊपर खुदी शिव की तीसरी आँख अवश्य दिखाएँगे। इस महामृत्युंजय महादेव मंदिर का शिवलिंग अति विशाल है और इसकी दीवारों पर महामृत्युंजय मन्त्र बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है। पुरातत्ववेत्ताओं ने दीवारों पर संस्कृत व ब्राह्मी भाषा में लिखे गये 25 अभिलेखों की खोज की है जो 7 वीं से 10 वीं सदी के बताये जाते है। मंदिर के शिखर पर लगी एक पाषाणी पट्टिका पर एक राजसी दम्पति द्वारा लकुलीश की पूजा अर्चना प्रदर्शित है। इसके ऊपर भगवान शिव के तीन मुखाकृतियों की शिल्पकारी की गयी है।

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