इस लेख में हमने आत्मशांति के मार्ग पाने के ५ स्थान बताये है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में तीर्थस्थलों की यात्रा का बहुत महत्व हैं। कण- कण में बसने वाले भगवान तीर्थस्थलों पर  अपने साक्षात रूप में विराजते है और उनके दर्शन करने वाले भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। हर कोई ईश्वर के इन दुर्लभ और अलौकिक स्वरूपों के दर्शन करना चाहता हैं।

भारतवर्ष देवी- देवताओं और ऋषि- मुनियों की जन्मस्थली रही हैं। 33 कोटि देवी देवताओं वाले इस देश में कई तीर्थ स्थल है, जहां पर लोग हर साल दर्शन की अभिलाषा लिए आते है। इनमे से कुछ तीर्थ स्थानों का अपना एक अलग महत्व है। ग्रंथो और पुराणों में वर्णित इन तीर्थ स्थानों पर  हमे ईश्वर की अलौकिक शक्ति का  अनुभव होता है । मन को पावन कर देने वाले ईश्वर के इन साक्षात स्वरूपों के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

तो आइए अपने इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको इनमे से कुछ ऐसे तीर्थस्थलों के दर्शन करवाते है  जिनकी यात्रा से आत्मा पापमुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करती है। आज हमें आत्मशांति के मार्ग को दंड कर उसपर चलने की आवश्यकता है। हम आत्मशांति के मार्ग पर चलकर हमारा जीवन सिखमय बना सकते है।

वो पांच स्थान जहां से खुलते हैं आत्मशांति के मार्ग

वाराणसी : ये स्थान आत्मशांति के मार्ग प्रथापित करता है।

Varanasi

वरुणा और असि  नदियों के तट पे बसा वाराणसी नगर विश्व के प्राचीनतम शहरो में से एक है। इसे बनारस और काशी नाम से भी जाना  जाता है। कहा जाता है जब भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ तो उन्होंने  हिमालय  को छोड़ कर कही और रहने का निर्णय किया तब उन्होंने काशी को चुना। तब से लेके आज तक महादेव ,कई देवी देवताओं के साथ यहाँ  विराजमान हैं। ये स्थान आत्मशांति के मार्ग प्रथापित करता है।

बनारस की खूबसूरती उसके घाटो में हैं। यह कुल 88  घाट हैं। इनमे दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट और  अस्सी घाट प्रमुख हैं। काशी की सुबह इन्ही घाटों  में डुबकी लगा कर हर- हर महादेव के जाप के  साथ शुरू  होती है ।दशाश्वमेध घाट के बारे में कहा जाता है की  इस घाट में डुबकी लगाने से 10  यज्ञों के बराबर का पुण्य  प्राप्त होता हैं। देश- विदेश से हर साल हजारों श्रद्धालु यहाँ  डुबकी लगाने आते हैं। मणिकर्णिका घाट शवदाह के लिए प्रसिद्ध है ।

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ऐसा माना जाता है की काशी में मरने पर मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। इसी वजह से लोग  यहाँ अपना देहत्याग करने आते है। काशी की यात्रा काशी विश्वनाथ के दर्शन के बगैर अधूरी है। काशी विश्वनाथ भगवान शिव के 12  ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। इस मंदिर के समीप ही काल भैरव, विरूपक्ष गौरी , विष्णु और विनायक मंदिर है। इसके अलावा यहां और भी कई मंदिर है जिनमे मां अन्नपूर्णा मंदिर और दुर्गा कुंड मंदिर प्रमुख हैं। काशी की सँकरी  गलियों में घूमना एक अलग एहसास दिलाता हैं।

यहां की कचौरियां और जलेबी का स्वाद आपको मंत्रमुग्ध कर देगा  । बनारस का पान अपने स्वाद के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। बनारस में शाम का दृश्य बड़ा ही मनोरम होता हैं। दशाश्वमेध घाट पे होने वाली गंगा -आरती का दृश्य मन को मोह लेता हैं। मिट्टी के दियो से पूरा घाट जगमग हो उठता हैं। महादेव की नगरी बनारस मोक्ष और समृद्धि का द्वार हैं। ये स्थान आत्मशांति के मार्ग प्रथापित करता है।

टूरिस्ट प्लेस होने के कारण यहां हर तरह की सुविधा मौजूद हैं। ठहरने के लिए यहां कई धर्मशाला और बड़े बड़े 5  सितारा होटलों के अलावा कई बजट होटल्स  भी हैं। ये शहर हवाई मार्ग और रेलमार्ग दोनो से देश के बाकी हिस्सों से जुड़ा हैं।

 केदारनाथ

वो पांच स्थान जहां से खुलते  हैं आत्मशांति के मार्ग

हिमालय की गोद में , मंदाकिनी नदी के तट पे स्थित केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिगो में सर्वश्रेष्ठ है। कहा जाता है जब पांडव युद्ध के बाद गोत्र हत्या का पाप मिटने के लिए शिव की खोज में काशी और गुप्त काशी होते हुए केदारभूमि पहुंचे तो भगवान शिव उन्हे एक भैसे के रूप में दिखे। पांडवो की भक्ति से प्रसन्न होके भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग का रूप लिया और तब से ये ज्योतिर्लिंग केदारनाथ के रूप में मौजूद हैं। हिमालय की सुंदर वादियों के बीच स्थित ये मंदिर अपनी सुन्दरता और  मनोरम प्राकृतिक छटाओं के कारण पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। हर साल हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते है।

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केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित है। केदारनाथ जाने के लिए देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार से बसे जाती है। बसों के द्वारा श्रद्धालु सोनप्रयाग जातें हैं। सोनप्रयाग से श्रद्धालु  खच्चर या फिर गाड़ियों के द्वारा गौरीकुंड  तक की यात्रा करते है। गौरीकुंड में माता पार्वती का एक मंदिर है। पुराणों के अनुसार भगवान गणेश की उत्पति इसी स्थान पे हुई थी। माता पार्वती के दर्शन के बाद श्रद्धालु केदारनाथ की 16 किलोमीटर की यात्रा के लिए चढ़ाई करते है। ये स्थान आत्मशांति के मार्ग प्रथापित करता है।

पैदल यात्रा न करने वालो के लिए खच्चर और पिट्ठू की सुविधा होती है। १६ किलोमीटर की यात्रा के बाद श्रद्धालु केदारनाथ मंदिर पहुंचते है और भोलेनाथ के दर्शन करते हैं। यहां का मुख्य आकर्षण यहां की  संध्या आरती हैं। मन को प्रफुल्लित करने वाले इस दृश्य को देखने मात्र से ही आत्मशांति का अनुभव होता हैं। हाथ जोड़े सभी भक्त हर हर महादेव के जाप के साथ अश्रुपूर्ण नेत्रों से अपने सभी सभी दुःख तकलीफे महादेव को कह देते है।

भक्तवत्सल भोलेनाथ अपने सभी भक्तो की मनोकामनाएं पूरी करते है। माया मोह के इस संंसार को भूल कर सभी श्रद्धालु महादेव की भक्ति में लीन हो जाते है। महादेव का यह दर्शन हजार स्वर्गो के सुख से भी ज्यादा सुखदायी होता है। ठहरने के लिए यहां से कुछ दूरी पर  एक बेस कैंप है, जहां पे टेंटों में श्रद्धालुओं के रुकने की व्यवस्था होती है।

हरिद्वार

हरिद्वार अर्थात हरि का द्वार। हजारों वर्षो से हरिद्वार हिंदू धर्मवालंबियो के लिए एक पूजनीय स्थान रहा है। कहा जाता है की जब भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो कर मां गंगा धरती लोक पर आई थी तब हरिद्वार में ही सर्वप्रथम गंगा का स्पर्श धरती से हुआ था। हरिद्वार के हर की पौड़ी से होते हुए ब्रह्मकुंड में स्नान करके ही चरो धामो की यात्रा की शुरुआत होती है।

कहा जाता है की गंगा के इस पावन जल में स्नान करने से जन्मों के पाप धुल जाते है। इस स्थान पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का वास हैं। हरिद्वार के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से ट्रेन उपलब्ध हैं। इसके अलावा आप रोड से निजी कार या बसों से हरिद्वार आ सकते है। देहरादून एयरपोर्ट से भी हरिद्वार के लिए बसे जाती है।

हर की पौड़ी में सुबह और शाम भव्य गंगा आरती होती है। इस गंगा आरती में हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां गंगा की आराधना करते हैं। गंगा आरती क्या ये पावन दृश्य अपने आप में दुर्लभ है। ये स्थान आत्मशांति के मार्ग प्रथापित करता है। पापों का नाश करने वाली मां गंगा अपने सभी भक्तो को मनवांछित वर देती है।

हर की पौड़ी से कुछ दूरी पे ही मायापुरी मंदिर है। यह वही स्थान है जहां राजा दक्ष ने यज्ञ किया था। जिस यज्ञ कुंड में माता सती ने अपने प्राण त्याग थी वो कुंड आज भी यहां मौजूद हैं। यहां पर भगवान शंकर का भी मंदिर है जिसे दक्षेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

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इसके अलावा यहां से कुछ दूरी पर माता मंशादेवी का मंदिर हैं। मंशादेवी मां अपने भक्तो की सभी मंशा पूरी करती है। हर की पौड़ी से 6 किलोमीटर की दूरी पर माता चंडीदेवी का भी मंदिर हैं। ये दोनो मंदिर पहाड़ों पे स्थित हैं जहां जाने के लिए रोपवे की सुविधा है। इसके अलावा पावन धाम और गायत्री माता का मंदिर भी लोगो को खूब आकर्षित करते है।

हरिद्वार में यात्रियों के ठहरने के लिए कई सस्ते धर्मशाला और आश्रम हैं। इसके अलावा प्राइवेट होटल्स भी श्रद्धालुओं को अपनी सेवा प्रदान करते है। खाने की चीजों के स्टॉल जगह -जगह पर लगे मिलते हैं।

माता वैष्णोदेवी मंदिर

जम्मू के कटरा में स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर, माता के भक्तो के ह्रदय में एक विशेष स्थान रखता है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु देश के अलग अलग हिस्सों से माता के दर्शन के लिए आते है। जम्मू तवी स्टेशन से कटरा 68 किलोमीटर की दूरी पे स्थित हैं। कटरा के लिए कोई डायरेक्ट फ्लाइट की सुविधा नहीं है। आप फ्लाइट से  चंडीगढ़ या अमृतसर आके वहां से कटरा के लिए बस ले सकते है।

माता वैष्णो देवी की दर्शन कटरा के मां कोल कंडोली मंदिर से शुरू होती है। माना जाता हैं की कलयुग में माता ने यही पर एक कन्या के रूप में जन्म लेकर अपने परम भक्त पंडित श्रीधर को दर्शन दिये थे । ये मंदिर माता की कई निशानियों को सहेजे हुए हैं। यहां वो झूला है जिसपे माता झूला झूलती थी। श्रद्धालुओं के लिए अगला पड़ाव देवा माई का  मंदिर होता है। पहाड़ों पर बसी मातारानी के भवन को पहुंचने के लिए 12 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती हैं।

इस चढ़ाई के लिए यह घोड़े और खच्चर की भी सुविधा होती है। देवा माई के मंदिर से होते हुए श्रद्धालु बाणगंगा पहुंचते हैं। कहा जाता है माता ने अपने बाण से यहां गंगा को लाया था । इस पावन जल में स्नान करने के बाद भक्तगण आगे बढ़ते है। इस यात्रा में जगह -जगह माता से जुड़ी कहानियां और उनके साक्ष्य मौजूद है। यात्रियों का अगला पड़ाव चरण पादुका मंदिर होता हैं। ये स्थान आत्मशांति के मार्ग प्रथापित करता है। इस मंदिर में मातारानी के पैरों के चिन्ह है।

माता वैष्णोदेवी के भवन जाने वाले इस मार्ग में यात्रियों के लिए हर सुविधाओं  का ध्यान रखा जाता हैं। जगह- जगह पर खाने- पीने की चीज़ों के स्टॉल, चिकित्सालय और बाथरूम की व्यवस्था होती है। भक्तो का पड़ाव अर्द्धकुमारी में जाके रुकता है। यहां पर एक गुफा है जिसे गर्भजून कहा जाता हैं। इस गुफा में मातारानी ने नौ महीनों तक तपस्या की थी। गुफा में जाने का मार्ग बहुत संकरा हैं। अर्द्धकुमारी  में श्रद्धालुओं के विश्राम के लिए कई धर्मशाला, और हॉल हैं। जय माता दी के नारे लगाते हुए भक्तगण अर्द्धकुमारी से माता वैष्णोदेवी के भवन की तरफ चल पड़ते हैं।

अर्द्धकुमारी से माता का भावना लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर है। भवन में माता अपने तीनों रूपो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती में विरजमन हैं। मातारानी के दर्शन मात्र से कष्ट दूर हो जाते हैं। पहाड़ोंवाली माता, ऊंचे डीरो वाली माता के जयकारों से वातावरण गूंज उठता है। कहा जाता हैं के माता के बुलावे के बना आप मां के इस मनोरम दृश्य के दर्शन नहीं कर सकते। पापनाशनी माता वैष्णोदेवी अपने भक्तो की हर मनोकामना पूरी करती है।

माता वैष्णोदेवी की यात्रा भैरव मंदिर के दर्शन के बगैर अधूरी हैं। कहा जाता हैं की देवी ने जब भैरव का सिर काटा  था तो इसी स्थान पर उसका सिर गिरा था। फिर उसने माता से क्षमा मांगी और माता ने उसे क्षमा कर दिया तब से उनकी भी पूजा इस भैरव मंदिर में की जाती है। माता के भवन के दर्शनों के बाद श्रद्धालु भैरव मंदिर में दर्शन कर के अपनी यात्रा संपन्न करते है। ये स्थान आत्मशांति के मार्ग प्रथापित करता है।

 वृंदावन

प्रेम और भक्ति के अमोल सागर की धरती वृंदावन मुरलीधर श्री कृष्ण की नगरी है। ब्रज की यह भूमि कृष्ण के लीलाओं और उनके प्रेम की साक्षी हैं। यहां का कण-कण कृष्ण भक्ति में डूबा हुआ है। वृंदावन आप रेलमार्ग, हवाईमार्ग और सड़कमार्ग  से जा  सकते हैं। वृंदावन का सबसे करीबी एयरपोर्ट आगरा हैं जहां से वृंदावन की दूरी 57 किलोमीटर हैं। वृंदावन, मथुरा रेलवे स्टेशन से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित हैं। मथुरा और आगरा दोनो जगहों से वृंदावन जाने के लिए बसों तथा प्राइवेट करो की सुविधा  हैं।

वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण के अनेकों मंदिर हैं। इनमे बांके बिहारी मंदिर प्रमुख हैं। वो पांच स्थान जहां से खुलते हैं आत्मशांति के मार्ग कहा जाता हैं की भगवान श्री कृष्ण ने अपने परम भक्त हरिदास को दर्शन देने के लिए बांके बिहारी रूप धारण किया था। बांके बिहारी मंदिर श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत उदाहरण है। ये स्थान आत्मशांति के मार्ग प्रथापित करता है। श्री कृष्ण के इस अनुपम रूप के दर्शन से मन भावविभोर हो जाता है।

यहां से कुछ दूरी पर राधावल्लभ मंदिर और राधा दामोदर मंदिर स्थित है। वृंदावन की हर गलियों में श्रीकृष्ण का वास है। भगवान श्रीकृष्ण अनंत है और उनके अनंत रूपो के दर्शन हमे वृंदावन में होते है। यहां एक सरोवर है जिसे कुशुम सरोवर के नाम से जाना जाता हैं। माना जाता हैं की भगवान श्रीकृष्ण और  श्री राधा जी इसी सरोवर के किनारे बैठ कर प्रेमलिलाएं  करते थे।

श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था, जिससे क्रोधित होकर देवराज इंद्र ने गोकुल को जलमग्न कर दिया था। तब ब्रजवासियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था। ये गोवर्धन पर्वत आज भी यहां मौजूद है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गोवर्धन पर्वत भगवान श्री कृष्ण का शरीर है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा साक्षात श्रीकृष्ण की परिक्रमा है। अतः भक्तगण इस गोवर्धन पर्वत की पूजा और परिक्रमा करते हैं।

वृंदावन में माता वैष्णोदेवी का एक भव्य मंदिर भी हैं। श्रद्धालु  अपनी वृंदावन की यात्रा में इस मंदिर में माता का आशीर्वाद लेने आते है। प्रेम मंदिर अपनी सुन्दरता और भव्यता के लिए प्रसिद्ध हैं । यह मंदिर शाम के वक्त रंगीन लाइट्स की रोशनी में सराबोर हो जाता है। प्रेम मंदिर में फाउंटेन शो भी होता हैं। इस्कॉन टेंपल की शांति और उसकी भव्यता भक्तो को मंत्रमुग्ध कर देती है।

वृंदावन के स्ट्रीट फूड्स में भी श्रीकृष्ण का अनमोल प्रेम छलकता हैं। यहां के पेडे बहुत ही स्वादिष्ट होते है। यहां यात्रियों के ठहरने के लिए  कई धर्मशाला और आश्रम है। श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन भक्तो को हमेशा आकर्षित करती है। श्रीकृष्ण ही आदि और अंत हैं। उनके दर्शन से मन तृप्त होता हैं और आत्मा मोक्ष को पाती है।

तीर्थस्थलों की यात्रा न केवल मन को पावन करती हैं बल्कि जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार  भी करती है। परमात्मा से मिलने के बाद आत्मा शुद्ध हो जाती है, और मानसिक द्वेषो का नाश होता है। तीर्थस्थलों की यात्रा से न केवल इस जन्म तथा हर जन्मों के पाप धुल जाते है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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