भारत का इतिहास बेहद खूबसूरत रहा है जिसमें बहुत सारे किले और दुर्ग का वर्णन हम बचपन से सुनते आए हैं। अक्सर हमारा बचपन दादी नानी की कहानियों के साथ गुजरता है जिसमें वह भारत के किलो से संबंधित कहानियां भी सुनाया करती थी। भारत के ऐतिहासिक किले (Historical Fort) भारत की शान है। प्राचीन समय में हर राजा अपने लिए किले बनवाया था और उनमें कुछ खासियत भी हुआ करती थी। एक के बाद एक राजा सिंहासन पर राज करने के लिए आया तो उसने अपने अनुसार किलो में बदलाव भी करवाए। राजा तो चले गए लेकिन ऐतिहासिक के लिए आज भी भारत की शान को बढ़ाने का काम करते हैं। ऐसे ऐतिहासिक किले जिनकी हर दीवार हर कोने कुछ ना कुछ राज़ दबाए बैठे हैं। भारत की कुछ ऐसी ऐतिहासिक इमारतें जिन्हें किले या दुर्ग के नाम से भी संबोधित किया जाता है उन्हें गढ़ और कोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। भारत में ऐसे ऐतिहासिक के लिए बहुत सारे हैं जिनमें से अधिकतर किलो को पहाड़ों पर बनाया गया है। पहाड़ों की चट्टानों को काट काटकर किलो का आकार देना उस समय के कारीगरों को बहुत अच्छे से आता था। भारत के ऐतिहासिक किलो (Historical Fort) में से मैंने भी बहुत सारे किलो का दर्शन किया है जिनमें से कुछ रोमांच और रहस्य से भरे किलो के बारे में आज मैं यहां पर आपको बताने वाला हूं। आज मेरी इस पोस्ट में आप पढ़ेंगे कि वह किले कैसे हैं और कैसे थे और उन तक आप कैसे पहुंच सकते हैं। तो चलिए भारत के ऐतिहासिक, खूबसूरत और रहस्यमई किलो की यात्रा प्रारंभ करते हैं।

श्रीरंगापटनम का किला

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टीपू सुल्तान के किले के नाम से जाना जाने वाला यह भारतीय किला श्रीरंगापटनम स्थान पर स्थित है। इसका निर्माण 1537 में सामंत देव गौड़ा के द्वारा करवाया गया था। यह किला कावेरी नदी के बीच एक उप दूरी पर स्थित है जो भारतीय इस्लामिक वास्तुकला शैली को दर्शाता है। इस किले में प्रवेश के चार द्वार बनाए गए थे जो अलग-अलग रास्तों को जाते हैं पहला द्वार दिल्ली दूसरा द्वार बैंगलोर तीसरा द्वार मैसूर तथा चौथा द्वार जल व गज की तरफ है। किले का इतिहास बड़ा रोचक है इसे पहले 1454 में बनाया गया था लेकिन इसे रक्षा केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया गया। बाद में जब यह किला टीपू सुल्तान के अधीन हुआ तब उन्होंने किले में बड़े बड़े बदलाव किए। इस किले में दर्शकों की एंट्री बिल्कुल मुफ्त है और यह सुबह 9:00 बजे से शाम को 6:00 बजे तक खुला रहता है। इसके लिए के पूरे दर्शन के लिए कम से कम आपको 2 घंटे का समय चाहिए। यह किला मैसूर से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके लिए तक पहुंचने के लिए आपको बेंगलुरु मैसूर राजमार्ग पर जाना होगा। इसके लिए तक आप सड़क ट्रेन अथवा टैक्सी या बस से भी पहुंच सकते हैं। इसकी लेकर 32 किलोमीटर दूरी पर हवाई अड्डा भी है जहां पर आप पहुंच कर टैक्सी करके केले तक पहुंच सकते हैं।श्रीरंगपटनम का किला भारत के ऐतिहासिक किले (Historical Fort) में से एक है |

रोहतास गढ़ किला (Historical Fort In India)

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कैमूर पहाड़ी के देहरी के दक्षिण में लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक किला है जिसे रोहतासगढ़ किला के नाम से जाना जाता है। और रोहतास गढ़ का किला भारत में एक शानदार पर्यटन और ऐतिहासिक स्थल (Historical Fort) है जहाँ पर आप अपने परिवार के साथ घूमने जा सकते हैं | यह किला समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊंचाई पर है जिसकी स्थापना रोहिताश्व ने करवाई थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि वह राजा हरिश्चंद्र का बेटा था। पर्यटन स्थल के रूप में यह किला बेहद खूबसूरत है और आकर्षित दार्शनिक स्थलों से भरा हुआ है। इसके किले में आपको गणेश मंदिर हाथी दरवाजा हैंगिंग हाउस हाथिया पोल आइना महल हब्श खान का मकबरा दीवाने आम रोहतासी मंदिर जामी मस्जिद देवी मंदिर आदि देखने को मिलेंगे। इस किले में कुल मिलाकर 83 दरवाजे हैं जिनमें से 4 मुख्य द्वार हैं जिनका नाम घोड़ा घाट राजघाट कठौतिया घाट और मेघा घाट है। अपनी नक्काशी और कलाकृतियों की वजह से यह किला बिहार का आकर्षक केंद्र है। रोहतास किला बिहार के रोहतास जिले में स्थित है जहां पर आप बस या टैक्सी के जरिए पहुंच सकते हैं।


वारंगल किला

Varangal Ka Kila (Historic Fort)
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हैदराबाद शहर से डेढ़ सौ किलोमीटर की दूरी पर तेलंगाना राज्य में स्थित वारंगल किला एक बहुत ही सुंदर दार्शनिक स्थल है। इसके लिए को आठवीं शताब्दी में यादव राजाओं के शासन में निर्मित किया गया था। 1262 तक यहां पर राजा गणपति देव का शासन था और उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी रुद्रमादेवी ने 1289 तक यहां पर शासन किया। इसके लिए के सभी द्वारों पर कमल की कलियों, पौराणिक जानवरों, पत्तेदार पूँछ वाले पक्षियों और लापरवाही मालाओं की जटिल नक्काशी आपको देखने को मिलेगी। इसके लिए की सुरक्षा के लिए उस समय 45 बहुत बड़े आयत कार टावर बनाए गए थे जिनमें से काफी सारे टावर प्राकृतिक आपदा में ढह गए। इसके लिए मैं चौधरी शताब्दी के दौरान दिल्ली सुल्तानों के द्वारा एक सार्वजनिक हॉल तैयार किया गया था जिसका नाम कुश महल रखा गया था। इसके लिए के दक्षिण परिसर में आपको एक शिव मंदिर भी देखने को मिलेगा जिसमें भगवान शिव का चतुर्मुखी शिवलिंग है। इतिहास का यह वारंगल खिलाफ हालांकि खंडहर में परिवर्तित हो गया है परंतु आज भी यहां के प्राचीन मंदिर और अन्य नक्काशी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। अगर आप हैदराबाद घूमने जाते हैं तो तेलंगाना राज्य में स्थित इस किले को देखने के लिए आप जा सकते हैं। इस किले में साउंड एवं लाइट शो भी होता है। इसमें दो शो किए जाते हैं जिसमें से पहला 6:30 से लेकर 7:20 तक आयोजित होता है आमतौर पर यह शो तेलुगू संस्कृति को प्रदर्शित करता है। दूसरा शो 7:30 से लेकर 8:20 तक होता है जो पूरा इंग्लिश में होता है। साउंड एंड लाइट शो इस किले का प्रमुख आकर्षण है जिसमें दर्शकों को वास्तु एवं ऐतिहासिक महत्व के बारे में काफी सारी बातें बताई जाती हैं। साउंड एंड लाइट शो को देखने के लिए यहां पर टिकट भी रखी गई है।


● पर्यटकों के लिए टिकट की कीमत ₹40 है।
● बच्चों के लिए टिकट ₹20 में मिलती है।

यदि आप वारंगल के लिए की ट्रिप का प्लान बनाएं तो आप सर्दियों में जाएं वरना गर्मी के दिनों में सुबह जल्दी या फिर दोपहर बाद शाम को ही आता करें। क्योंकि तेलंगाना एक ऐसा राज्य है जहां पर गर्मी बहुत ज्यादा होती है इसलिए धूप से बचने के लिए अपने टोपी सनग्लासेस एवं पानी की बोतल भी साथ रखें। इसके लिए को देखने का समय सुबह 10:00 बजे से लेकर 7:00 बजे तक का रहता है। वारंगल फोर्ट में पर्यटकों की एंट्री के लिए भी टिकट लगती है जिसमें:-


● भारतीय नागरिकों के लिए ₹15 का टिकट।
● विदेशी पर्यटकों के लिए ₹200 का टिकट।
● वीडियो कैमरा ले जाने के लिए ₹25 का टिकट अलग से लेना पड़ता है।

आपको बता दें कि यदि आप वारंगल किला घूमने जाते हैं तो आसपास की जगह भी देख सकते हैं जिनमें भद्रकाली मंदिर, काकतीय संगीत उद्यान, सिद्धेश्वरा मंदिर, हजार स्तंभ मंदिर, श्री वीरनारायण मंदिर, इस्कॉन मंदिर, मिनी चिड़ियाघर, गोविंदराजुला गुटटा ऐसे बहुत से स्थान हैं। इसके अलावा आप दिल्ली के famous places पर भी घूम सकते हैं | वारंगल किले की यात्रा करने के लिए आप आसानी से फ्लाइट ट्रेन और बस या फिर पर्सनल टैक्सी से भी यात्रा कर सकते हैं। प्लेन से ट्रैवल करने के लिए आपको 172 किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी क्योंकि हैदराबाद हवाई अड्डे पर उतरने के बाद आपको टैक्सी बस या कैब का सहारा लेना होगा। ट्रेन से यात्रा के लिए आपको वारंगल किला बहुत नजदीक पड़ेगा क्योंकि किले के निकट ही ट्रेन मार्ग जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग दो प्रमुख शहरों और हर दार्शनिक स्थलों से जुड़ा होता है इसलिए आप बस अथवा टैक्सी का सहारा ले सकते हैं।

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